Defining Being

As you may know me.... I try to pen my feelings, with more honesty than with language and grammar. While reading the posts below you may experience what compelled me to write these.
While I was thinking of giving a name to my Blog; this came to me; "Nuances of Being"
Being "Me" is the best that I am at and hope that will show in the posts below

And Thanks for reading

~Nikhil




Friday, October 25, 2013

राम और रावण

Note: 

"एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा।"
यह कविता प्रयास है उस घट में लेटे राम को समर्पित जिसे हमारे विचार और आचरण बनाते हैं 

Ram and Ravan, the most famous characters from hindu mythology. Both opposite of each other. But both have so many similarities. I think it was not the birth or the character that made Ram whom we all worship and Ravan who is despised by generations.Rather it was the choice of actions and the life they lived that decided who gets what status in the eyes of generations to come.Many a times i see we are at that crossroad in our mind where the action we chose will define our life ahead.The poem below is a humble attempt to keep the mind focused while making the choice of action. Please read and comment.


मर्यादा पुरषोत्तम राम और 
हठधर्मी मायावी रावण 
दोनों ही हर मन के भीतर 
लड़ रहे युद्ध निरंतर 

राम भक्त शिव भोले के 
शंभू का उपासक रावण भी 
राम शौर्य की मूरत तो 
वीरता का धारक  रावण  भी 

राम का त्याग अनुकरणीय तो
रावण का तप भी दृष्टांत योग्य
भरत, लक्ष्मण का बंधुत्व उल्लेखनीय  तो
कुम्भकरण का भ्रत्रिप्रेम भी दृष्टांत योग्य

बस दंभ अगर न करता तो 
रावण भी राम सा हो सकता था 
जो सीता को न हरता तो 
रावण भी राम सा हो सकता था 

शिव के वर को पा कर जो 
मन में अहम् न आने देता 
श्रूप्नखा का सत्य जानता 
न स्वयं को छल जाने देता 

धीरज से अगला पग धरता 
बात से स्तिथि को हल जो करता 
तो न राज्य  और कुटुंब गवाता 
तो न अपमानित हो मृत्यु पाता 

संयम मन में हो तो राम है 
निरंकुश दंभ रावण समान है 
मन मर्यादा में रहे तो पुरुषोतम
मर्यादा टूटे मन में तो रावण







Thursday, October 3, 2013

Nuances of Being: देश का नेता कैसा हो?

Nuances of Being: देश का नेता कैसा हो?: With elections just around the corner and most of the people just making opinions based on what media wants them to believe or what some s...

देश का नेता कैसा हो?

With elections just around the corner and most of the people just making opinions based on what media wants them to believe or what some shrewd politician (ruling or opposition) may say. I think we the well-read folks should look at the resume and not the speeches of the politicians or reports from media which are more media opinions than real reports.... tried to sum up that sentiments in a poem below...hope you like it!!

एक सवाल, साल दर साल, पूछ रही है जनता तो 
कौन जवाब दे इस सवाल का? कौन करे इस फैसले को?
देश का नेता कैसा हो, आखिर किस के जैसा हो  ?

जनता अब खुद जिम्मेदारी  ले 
वोट डाल जिताते जिनको, उनको भी तो जा कर पूछो , 
ऐसा कौन सा काम किया जो, फिर से तुम्हे चुन पाए हम?
कब हमारे काम हो आये, के अब तुम्हारे काम आये हम?

रावण के दस सरों का जैसे, दसों दलों से हो आते तुम 
भीतर से तो सब रावण ही हो , फिर क्या हमको बहलाते तुम?
खुद तुम सब सत्ता के लोभी,  एक दूजे पे लांछन  करते  
आपस की गन्दी शतरंज में, जनता को मोहरे सा वापरते 

हम को तुम बस मुर्ख न समझो, और न हमें बहलाओ तुम 
दूजो की कमी के गीत न गाओ, अपना गुण तो समझाओ तुम?
तुम में ऐसा क्या अच्छा है, कि जनता तुम को नेता वर ले?
पिछले वाले के बदले में, क्यों तुम को कुर्सी पे धर दे?

जीत के तुम भी  तो रावण से, अपनी असलियत  दिखाओगे 
भोली सीता (जनता) को बहला कर, जब रेखा पार ले आओगे 
तो हर कर उनके विश्वास को , दंभ से भरी अट्टहास भरोगे 
लोगों के भरोसे की लाश गिरा कर , उस पर सालों राज करोगे 

आज ने बोलो दूजे की कमियां , आज ना झूठ से बहकाओ तुम 
क्या करने का है दम तुम में , अपना परिचय तो करवाओ तुम 

आज तुम्हे बतलाते है कि देश का नेता कैसा हो 
हम में से ही कोई एक; बस हमारे ही जैसा हो 
राशन की कतार  में घंटो  लग कर ही अपना चूल्हा जलाता हो 
अपने बच्चो को सरकारी स्कूल में इमान  के पैसे से पढ़ाता हो 
चोरी और बेईमानी को मन से जो पाप मानता हो 
पढ़ा लिखा हो, देश-विदेश की नई  पुरानी बहुत सी बातें जानता हो 
जब जाये दूजो के देश तो सबका  मन गर्व से भर जाये 
अपने देश को (सच के भरोसे) फिर सोने की चिढ़िया कर जाये!!