हर वो जगह जहाँ हम ने माथा टेका, जहाँ पहुंचना ज़रूरी था, चाहे वो मंदिर हो या पाठशाला या कुछ और, किसी न किसी सीड़ी से सहारा तो लिया होगा | कोई ईंट होगी जिसने बोझ सहा होगा।किसी दीवार का सहारा ले कर खड़े हुए होंगे। कोई रेलिंग पकड़ी होगी। यह कविता उस सीड़ी, उस दीवार उस रेलिंग के नाम।
अपने माथे पे उठाती है
धन्य है मंदिर की सीड़ी जो
ईश्वर मूरत तक पहुंचाती है
उस सीढ़ी का भी सत्कार करो
उसके धैर्य की शक्ति है जो
पूजन सम्पूर्ण करवाती है
धन्य है मंदिर की सीड़ी जो
ईश्वर मूरत तक पहुंचाती है
इतना ही बस स्मरण रहे
सीड़ी क्षीण हो टूट जाये तो
राह कठिन हो जाती है
धन्य है मंदिर की सीड़ी जो
ईश्वर मूरत तक पहुंचाती है
Beautiful lines
ReplyDelete🙏 Thanks
DeleteHar har Mahadev Jai ho beautiful lines
ReplyDeleteThanks 🙏
DeleteVery nice poem.
ReplyDeleteThanks 🙏
DeleteNice poem...keep going
ReplyDelete🙏 thanks
DeleteHarekrishna
ReplyDelete🙏
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