चिंगारी बन कर रुकी है अभी
राख़ दिख रही जो आँखों को
अंगार उस में छुपी है अभी
हवा का रुख इस ओर हो तो
राख़ की चादर उड़ जाएगी
दबी आग है जो चिंगारी में
धधक ज्वाला लहराएगी
ना छेड़ो इसे, ना सहलाओ
ना छुओ ना तिरस्कार करो
जला नहीं रही, पर आग है यह
आदर रखो, भले ना सत्कार करो
जब धधकेगी, ऊँची उठेगी
उस क्षण का इंतज़ार करो
ज्वाला थी जो, बुझी नहीं है
चिंगारी बन कर रुकी है अभी
राख़ दिख रही जो आँखों को
अंगार उस में छुपी है अभी
वाह!
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏
DeleteBeautiful lines Nikhil
ReplyDeleteThanks Piyush
DeleteSuperb tinu bhaiya.
ReplyDeleteThanks Golu
DeleteZabardast hai. Truly inspiring
ReplyDelete🙏 thanks Bhai
DeleteSuperrrrrr se uppar,💞
ReplyDeleteThanks 🙏
DeleteIt's awesome! It's Instant pep up. It, almost immediately, filled me up with vigour & enthusiasm.
ReplyDeleteThanks Bhai. Your comment really makes me feel successful about writing this 🙏
DeleteIt is very true metaphorically and physically both. Gratitude to every step of ladder that leads to HIM
ReplyDeleteThanks. Your comment more aligned with my new poem " मंदिर की सीड़ी "🙏
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