Defining Being

As you may know me.... I try to pen my feelings, with more honesty than with language and grammar. While reading the posts below you may experience what compelled me to write these.
While I was thinking of giving a name to my Blog; this came to me; "Nuances of Being"
Being "Me" is the best that I am at and hope that will show in the posts below

And Thanks for reading

~Nikhil




Saturday, December 3, 2022

साइकिल और चितकबरा

 IF you are not able to read in Hindi this story's english translation is at https://nuancesofbeing.blogspot.com/2022/12/bike-ride-and-spotty-street-dog.html 


बहुत साल पहले की बात है, कुछ धुंदली सी याद है.

मैंने नया नया साइकिल चलाना सीखा था. तब मेरी उम्र क्या थी वो मैं नहीं बताऊंगा. बस इतना कि मैं अभी भी घर और मोहल्ले में बच्चों वाली टीम में था.

साइकिल चलाना थोड़ा मुश्किल लगता था इस लिए थोड़ा थोड़ा डर था मन मे. पर मज़ा भी बहुत आता था, ठंडी ठंडी हवा से चेहरे को नहलाते हुए खाली रास्ते पे तेज़ी से साइकिल भगाना. साइकिल का मजा, साइकिल के डर से कहीं बड़ा था.

 पर उस उम्र में एक और डर था जिसका कोई हल नहीं था. वो था गली के कुत्तों का डर. शोले में वीरू जी ने कुत्तों के सामने ना नाचने की ताकीद तो दी पर यह नहीं बताया कि कुत्तों के सामने साइकिल चलाना कितना बड़ा जोखिम है. बताते तो शायद यह कहानी ना बनती


 गली के सब कुत्ते गर्मी की दोपहर में दिन की भोंका भोंकी से थक कर जब गली के नुक्कड़ में सुस्ताते दीखते हैँ, तब दरअसल वह  सुस्ता नहीं रहें होते, पर उब कर बैठे होते हैं, क्यों कि गर्मी कि दोपहर में कम ही कोई बाहर आता है. और उन्हें मनोरंजन के लिए किसी की तलाश होती हैं

 उस दिन साइकिल के नये नये मज़े ने मुझे छुट्टी के दिन भरी दोपहर में मजबूर कर दिया गली में साइकिल ले कर निकलने को. दिल में इतनी उमंग थी साइकिल पे उड़ने की, कि इस अर्जुन ने गली का खालीपन देखा चिड़िया  की आँख कि तरह, आस पास क्या था वह उस अर्जुन ने भी नहीं देखा था और इस अर्जुन ने भी नहीं देखा. उसकी किस्मत मे कुछ टहनिया , पत्ते रहें होंगे, पर मेरे लिए उब के बैठे कुत्ते थे. इस इतज़ार में कि कोई मुझ सा आये तो उनका दोपहर का मज़ा बने.

 साइकिल पे बैठ के मैंने पाव चलाये और हवा से गुफ़्तगू शुरू हो गयी. अर्जुन हवा से बात करने में इतना मशगूलहुआ कि कब कुत्ते अपना कोना छोड़ चुके थे इस का पता भी ना लगा. फिर कुछ मिनट बाद सच से सामना हुआ, जब समझ आयी कि मैं साइकिल अपने लिए नहीं कुत्तो के मनोरंजन के लिए चला रहा था. फिर क्या था वो दोपहर कि साइकिल मस्ती एक लम्हे में जिंदगी और मौत का खेल बन गयी. उस दिन समझ में आया कि कई  चीज़ें बच्चों को प्रेरणा दें सकती हैं, अपने आप से ऊपर उठने की, जिनका ज़िक्र किताबों में नहीं होता. कसम से मैंने इतनी तेज़ साइकिल पहले कभी नहीं चलाई थी.

और एक एक कर के जहाँ मेरी साइकिल शहर की कई गलियों को पीछे छोड़ रही थी, वहीँ एक एक कर के कुत्ते भी हताश हो वापिस लौट रहें थे. और 10 मिनट बाद सिर्फ मैं, और चितकबरा रह गये. उसकी प्रेरणा शायद मुझ से भी बड़ी थी. पाँव थक रहे थे हम दोनों के, और रफ़्तार कम हो रही थी, पर शायद रुकना दोनों के लिए नामुमकिन था.

 कुछ और मिनट यह चला और फिर उसकी ज़िद मेरी जान पे भारी पड़ने लगी. साइकिल और चिकबरे में फांसला कम हो रहा था, और वो अचानक झपटा, शायद अपनी सारी ताकत लगा के. मैं आखिर बच्चा था कितना बचता, वो झपटा तो मैं हड़बड़ा के गिर गया.

 अब सडक पे मंज़र यह था कि एक कोने में मैं  गिरा हांफ रहा हूँ. अंग शिथिल पड़ रहें हैं शायद  जैसे अर्जुन के रणभूमि में गाण्डीव उठाते समय रहें होंगे. कुछ दूर मेरी साइकिल है. साइकिल के उस और है चितकबरा. हम दोनों एक दूसरे को साइकिल के बीच से देख रहें हैं. अब सवाल यह है कि इसे चाहिए क्या. शहर का कुत्ता हैं, शिकारी कतई नहीं. मेरी मम्मी कि फ़ेंकी ब्रेड पे पला है. उसे भी पता है वह शिकारी नहीं हैं. अगर वह शिकारी नहीं तो मैं शिकार नहीं. और अगर यह सब सच है तो इतनी दौड़ क्यों? तब आँखों के बीच से दिखा साइकिल. पर साइकिल का यह क्या करेगा? 

 मैं ज़ोर से हंसा और उस से कहा, अब पकड़ लिया तो चला भी लो इसे, इशारा साइकिल के तरफ था. उसे मेरा
मज़ाक समझ आ गया था. वो उठा साइकिल को सूंघा और झेप के अपनी गली तो तरफ मुड़ गया. 

 मैंने उठ के कपड़े झाड़े, और साइकिल उठाई, धीरे धीरे घर की तरफ चलाना शुरू किया. और तब जान गया कि कुत्ता जब पीछे भागता है तो पता उसे भी नहीं होता कि वह साइकिल पकड़ लेगा तो करेगा क्या?

 अगर कभी कोई बिना बात के आपकी टांग खींचे या टोके, तो आप मेरा यह किस्सा याद करें और खुद से पूछें, अगर यह साइकिल रोक लेंगे, और  गिरा भी देंगे, पर क्या वह खुद साइकिल चला पाएंगे. (और ज़ाहिर है यहाँ साइकिल से मुराद है वो काम जिस पे ऐसे लोग आपको टोक रहे हों)  अगर लगे नहीं, तो बेफिक्र साइकिल पे पैर चलाये, चेहरे पर हवा का लुत्फ़ लें, और जब वह झपट के आपको गिरा दें, तो उनकी आँखों में आँख डाल कर पूछें, " अब क्या ? ". इस के बाद मज़े से साइकिल फिर उठाये, फिर चलाएं और फिर मज़ा ले, जब तक कोई दूसरा झपटा ना मारे. जिंदगी का मज़ा ऐसे लम्हो में भी मिल जाता है. 

14 comments:

  1. You have the art to turn every incident to motivation. Excellent story and very motivating and thought provoking

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  2. Simply awesome! Beautiful articulation. And wow what an inspiring perspective given to a simple incident. The twist of perspective at the end Made this worth reading.

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  3. This is just awesome. You have done a very fine job with the subject. Simple yet very much inspiring.

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  4. This is it, One must realize how important small things in life but if we stay n see

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  5. Bahut khoob kaise aik story ke madyam se itni Bari giyaan ki baat keh di.

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  6. Dear tinu wow tune bachpan ki choti si yaad se sabhhi ko bravery ka raasta sikhaya

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