एक और याद, जो शायद 1987 से 1995 के बीच ही हुआ, इस लिए कुछ नयी पीढ़ी वाले दोस्त, भाई, बहिन शायद इस का उतना लुत्फ न ले पाए.... और इस बार सिर्फ ४ पंक्तिया क्यों कि अगर आपको यह याद वहां ले गयी जहा से यह आयी है तो आप कई किस्से सोच के खुद ही मुस्कुरायेंगे.
तो चलिए फिर मिलिए उस एक रात से और सोचिये। .....
कुछ चीज़ें बेशकीमती होती हैं
जैसे बस वो एक रात......
दोस्त , यार , मोहल्लेदार
एक दिन में प्लानिंग
दो दिन का लंबा इंतज़ार
एक नयी , एक पुरानी
एक अंग्रेजी और एक डरावनी
रात बस एक और फिल्में चार
और एक किराये का वी सी आर (VCR)
कुछ चीज़ें बेशकीमती होती हैं
कुछ चीज़ें बेशकीमती होती हैं
जैसे.......
Yadein taza ho gayi, very nicley penned down.keep writing.
ReplyDeleteThanks Anand.
DeleteBeautiful written 👌👍👏
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