Defining Being

As you may know me.... I try to pen my feelings, with more honesty than with language and grammar. While reading the posts below you may experience what compelled me to write these.
While I was thinking of giving a name to my Blog; this came to me; "Nuances of Being"
Being "Me" is the best that I am at and hope that will show in the posts below

And Thanks for reading

~Nikhil




Saturday, October 21, 2023

माथे के कागज़ पे

 



माथे के कागज़ पे

यह जो लकीरें हैँ
सोच की  स्याही से हैं 
कहानियाँ लिखी हुई
दोस्ती का चश्मा लगाओ 
और देखो  .... 
सुनेंगी और दिखेंगीं भी

पढ़ो इन्हे तो शायद
दिलचस्प बातें  मिले
कुछ बताने वाली 
कुछ छुपाने वाली 

कुछ हँसाने वाली 
कुछ रुलाने वाली 
कुछ याद कराने वाली 
वो जो दिन थे 
वो जो शामें  थी 
वो काम जो पूरे किये 
वो दिन जो अधूरे जिए

माथा नहीं है सिर्फ दोस्त 
गाथा है इसमें छुपी हुई 
आओ कुछ  फुर्सत ले कर 
चाय का प्याला उठाओ 
दोस्ती का चश्मा लगाओ 
और पढ़ो  ...

माथे के कागज़ पे
यह जो लकीरें हैँ
सोच की  स्याही से हैं 
कहानियाँ लिखी हुई




10 comments:

  1. Marvelous. How you say such deep things in so simple way. You are the real poet

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  2. Fursat is must especially mental and emotional.

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  3. Wah bhai wah, kuch Adhuri mohbaten aur kuch be-tukki kashishen..

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    1. बेतुक्की ख्वाहिशे ही कामयाब होती हैं

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  4. कुछ हँसाने वाली
    कुछ रुलाने वाली
    कुछ याद कराने वाली
    Wah kya khoob kaha

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