माथे के कागज़ पे
यह जो लकीरें हैँ
सोच की स्याही से हैं
कहानियाँ लिखी हुई
दोस्ती का चश्मा लगाओ
और देखो ....
सुनेंगी और दिखेंगीं भी
पढ़ो इन्हे तो शायद
दिलचस्प बातें मिले
कुछ बताने वाली
कुछ छुपाने वाली
कुछ रुलाने वाली
कुछ याद कराने वाली
वो जो दिन थे
वो जो शामें थी
वो काम जो पूरे किये
वो दिन जो अधूरे जिए
माथा नहीं है सिर्फ दोस्त
गाथा है इसमें छुपी हुई
आओ कुछ फुर्सत ले कर
चाय का प्याला उठाओ
दोस्ती का चश्मा लगाओ
और पढ़ो ...
Marvelous. How you say such deep things in so simple way. You are the real poet
ReplyDelete🙏 Thanks Bhai for the encouragement.
DeleteFursat is must especially mental and emotional.
ReplyDelete🙏 truly
Deletevery well said tinu bhaiya.
ReplyDeleteThanks
DeleteWah bhai wah, kuch Adhuri mohbaten aur kuch be-tukki kashishen..
ReplyDeleteबेतुक्की ख्वाहिशे ही कामयाब होती हैं
Delete
ReplyDeleteकुछ हँसाने वाली
कुछ रुलाने वाली
कुछ याद कराने वाली
Wah kya khoob kaha
🙏 thanks
Delete