माथे के कागज़ पे
यह जो लकीरें हैँ
सोच की स्याही से हैं
कहानियाँ लिखी हुई
दोस्ती का चश्मा लगाओ
और देखो ....
सुनेंगी और दिखेंगीं भी
पढ़ो इन्हे तो शायद
दिलचस्प बातें मिले
कुछ बताने वाली
कुछ छुपाने वाली
कुछ रुलाने वाली
कुछ याद कराने वाली
वो जो दिन थे
वो जो शामें थी
वो काम जो पूरे किये
वो दिन जो अधूरे जिए
माथा नहीं है सिर्फ दोस्त
गाथा है इसमें छुपी हुई
आओ कुछ फुर्सत ले कर
चाय का प्याला उठाओ
दोस्ती का चश्मा लगाओ
और पढ़ो ...