चिंगारी बन कर रुकी है अभी
राख़ दिख रही जो आँखों को
अंगार उस में छुपी है अभी
हवा का रुख इस ओर हो तो
राख़ की चादर उड़ जाएगी
दबी आग है जो चिंगारी में
धधक ज्वाला लहराएगी
ना छेड़ो इसे, ना सहलाओ
ना छुओ ना तिरस्कार करो
जला नहीं रही, पर आग है यह
आदर रखो, भले ना सत्कार करो
जब धधकेगी, ऊँची उठेगी
उस क्षण का इंतज़ार करो
ज्वाला थी जो, बुझी नहीं है
चिंगारी बन कर रुकी है अभी
राख़ दिख रही जो आँखों को
अंगार उस में छुपी है अभी