चेहरा ही धुंदला है, ऐसा सोचते थे
कभी चेहरा धोते कभी छुपाते
दाग हमेशा फ़िर भी दिख जाते
रोज़ चेहरे पे जाने क्या क्या घिसते रहे
बेगैरत दाग़ अक्स में रोज़ाना दिखते रहे
अब सालों बाद आईना बदला
तब बात कहीं समझ में आयी
चेहरा साफ था आईना धुंदला
चेहरे पे दाग नहीं था भाई
अब किस्मत को बुरा कहें
या बोलें वक़्त हमें छल गया
आईना साफ मिला तो जाना
घिस घिस के चेहरा ही ढल गया
Let me know if you think that the mirror in my Poem above is always a mirror. Or what it can be if it is not a mirror !!!