I was talking to a friend
lately, don’t think I could help, but tried to pen his dilemma in a few words. You
know who you are my friend and you know you can change it, good luck to you and
for all others read the lines below and say a prayer for my friend…
हसरत की तो क्या कमाया? इज़्ज़त उल्टा और गवा ली |
खुद जब ख़ुदमुख़्तार रहे हो,
तो क्यूँ इतने झुक कर चलते हो?
लोग समझते हैं कमज़ोरी, यह आदत तुम्हारी अच्छाई वाली
सोचो क्या सिखाओगे, जब खुद सीख़ के भी अनंसीखे हो?
मुस्काते हो, झूठे लगते हो, हँसी तुम्हारी नकली वाली
क्यों कहने से इतना डरते हो?
क्या खो जाने की फ़िक्र करते हो?
ग़र टूटे वह डोर थी कच्ची, कभी न थी भरोसे वाली |
चैन लापता, होश भी ग़ुम, नींद ऊपर से और गवा ली
मिलो तो सही तब तो पूछें, कैसे बिताई ऐसी वाली?
Oh! by the way this should
not be my new year post…will post something soon to welcome the turn of the
year