The poem below is an observation, a caution and an advise. Posting this especially for the friends who became parents recently. So good luck for an awesome journey called parenthood. And to everyone else, hope this strike the strings in heart...
बसते हुए घर
पुख्ता उम्र - Mature
बसते हुए घर
भागते कदमों के नीचे
चरमराती सीढ़ियां,
चीख़ते, रोते कभी झगड़ते, चिल्लाते
चीख़ते, रोते कभी झगड़ते, चिल्लाते
मानते, हँसते कभी बेबात खिलखिलाते
लगता कोई कोहराम का मंज़र है
पर यह बच्चों से आबाद बसते हुए घर हैं
बेकार के झगड़े, बिन बात की बहस
बेकार के झगड़े, बिन बात की बहस
खनकती हंसी जैसे चिरैया की चहक
टूटते दांत तो फूटते घुटने कहीं
छोटी बाहों, बड़े दिलों की जफ़्फ़िया गुनगुनी
आँख की नमी तो बस रेहमत का शुक्र है
क्यों कि यह बच्चों से आबाद बसते हुए घर हैं
ख़ुद मुख्तार हो जाएँगी
इनकी शरारते, पुख्ता उम्र में खो जाएँगी
इस कोहराम, इस जफ्फी को याद रखना
जफ्फी के सेक की याद में ठंडक का असर है
जो यह बच्चों से आबाद बसते हुए घर हैं
कोहराम - Chaos
मंज़र - View, Scene
नेमत - Gift, Blessing
ख़ुद मुख़्तार - Self dependent
Heart touching. Time passes very fast
ReplyDeleteLooking at pics when Shaunak and Shravya were around a year old... I was thinking this..
DeleteAwesome!!! Really great poem!! Very touching!
ReplyDeleteThanks
DeleteThe day ll come when we ll say Good bye to this world we must know the world further before this happens
ReplyDeleteAnd that can be happened only once we die while being alive
This art can be learnt with doing surrender to whom has himself done this