नानी के घर का बोला तो कुछ दिन तक याद वही रुकी रही, वैसे भी बचपन की यादें आ कर दिल में ठहर जाती है. तभी तो बेशकीमती होती है…एक और याद मेरे छुटपन के दोस्तों की
कुछ चीज़ें बेशकीमती होती हैं
जैसे छोटे छोटे दोस्तों के बड़े बड़े मंसूबे
बैट और बॉल हाथ में थामे
पार्क के जंगले पे बैठ कर बांटते
जागती आँखों के सपने ।
भेद नहीं कोई भाव नहीं, न ईर्षा न द्वेष
हर जात रँग तबके वाले
रंग बिरंगे दोस्त थे अपने ;
छोटे कद पर बड़े इरादे
बड़े दिलो के बड़े बड़े वादे
मिठाई मिले या डांट मम्मी की
सब कुछ बांटे आधे आधे,
आज चाह कर भी वह दिन न मिलते
समय न मिलता, दिल न मिलते
वो दोस्त, वो यादें, वो मंसूबे, वो इरादे
कुछ चीज़ें बेशकीमती होती हैं
जैसे कॉलेज के वो पहले दिन ..............
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Kya baat hai Mitr. I am sure you are keeping these lines secure. As we must try and publish them.
ReplyDeleteThanks for the encouragement.
ReplyDeleteToo good
ReplyDeleteToo good
ReplyDeleteToo good
ReplyDeleteThanks Cheenu
DeleteThis journey is getting more fascinating with each episode. Make us realize how rich we are because of these treasures, which nobody can take away
ReplyDeleteThis journey is getting more fascinating with each episode. Make us realize how rich we are because of these treasures, which nobody can take away
ReplyDeleteThanks Bhai..... more I am writing more I feel how connected we are and how universal some things can be
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