भाषा में कई चीज़ें ऐसी होती है जो कि सामने होते हुए भी छुपी रहती हैं ।
आज अचानक सोचते हुए मुझे ऐसी ही एक बात ने अपनी ओर आकर्षित किया ।
जब हम हिन्दु धर्म में अपने इश्वर का समर्ण करते है तो एक नाम जो सृजनकर्ता है हमारे मन में गूंजता है, और वो शब्द है ब्रह्म । सबसे बड़ा ज्ञान; ब्रह्म ज्ञान| सब से अभेध अस्त्र; ब्रह्म अस्त्र ।
हर कण में ब्रह्म का निवास है, ब्रह्म ही सृजक है सारी सृष्टि के ।
साधू - सन्यासी ब्रह्म को जानने की इच्छा लिए यज्ञ, तप, पूजा, पाठ इत्यादि करते हैं ।
पर ब्रह्म मिलने से पहले ज्ञान मिलता है । शास्त्रों का ज्ञान, प्रकृति का ज्ञान, ईश्वर के कहे शब्द कभी गीता में तो कभी वेदों में से घुल कर मस्तिक्ष में समाते हैं ।
ज्ञान का मिलना अपने आप में एक उपलब्धि है और कदाचित एक परीक्षा भी। ज्ञान जहाँ सिखाता है वहीँ मनुष्य को ऊपर भी उठाता है । अब ऊपर उठता हुआ मनुष्य अपने चारों ओर नीचे ठहरे हुए मनुष्यों को देखता है । कुछ वोह लोग जो दिनचर्या में इतने मगन है कि ईश्वर की मंदिर में लगी मूरत या कोई चित्र देख कर ही संतुष्ट हैं । ऐसे लोग प्रयास ही नहीं करते ब्रह्म को जानने का, न ही ज्ञान अर्जित करने का (सिवाए उस ज्ञान के जो उनके व्यवसाय को बढ़ावा दे सके)। फिर वोह लोग जो जानना तो चाहते है पर समय नहीं है ।और वोह लोग जो ब्रह्म पथ पर तो है पर कई सीडिया नीचे। ऐसे न जाने कितने ही कारण और कितने ही मनुष्य जो कही नीचे दीखते है। बस इसी क्षण परीक्षा प्रांरभ हो जाती है।
कुछ नीचे लोगो को देख कर दुःख करते हैं उनके दुर्भाग्य पर जिन्हे ब्रह्म को पाने कि इच्छा ही नहीं है। कुछ दम्भ करते हैअपने अर्जित किये हुए ज्ञान पर। कुछ अपने छूटे हुए व्यवसाय को देख कर अपनी ब्रह्म साधना पर कुंठित होते है और कुछ अर्जित किये हुए ज्ञान को बाँट कर गौरव प्राप्त करने लग जाते हैं।
ऐसे ही कुछ कारण परीक्षा में उत्तीर्ण होने में बाधक बन जाते हैं। ऐसा नहीं कि इन अनुतीर्ण साधको को कुछ नहीं मिलता, इन्हे मिलता है इन्हे मिलता है ब्रह्म जैसा ही सुनाई देने वाला
.... भ्रम।
भ्रम अपने ज्ञान के दम्भ का, भ्रम अपने श्रेष्ठ होने का, भ्रम अपने ब्रह्म के पास होने क। बहुत से ऋषि-मुनि, साधक, शिक्षक इत्यादि ऐसी भ्रम को ब्रह्म मान के जीते रहते है।
जिस ने भी हिंदी भाषा को बनाया होगा उसने इस सच को बहुत करीब से देखा होगा और इसी लिए ब्रह्म और भ्रम को एक जैसे नाम दिये।
सोचिये ब्रह्म ज्ञान या ज्ञान का भ्रम आपको क्या पाना है, और कहीं आप भ्रम को ज्ञान मान कर तो नहीं रह रहे?
तो ब्रह्म को कैसे पाये? यदि मुझे पता होता तो नै अवश्य कहता। अभी अभी तो मुझे ब्रह्म और भ्रम का रहस्य मिला और मैंने आप से बाँट लिया। अब आप बताये कोई भाषा का रहस्य आपके पास हो तो।
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