With elections just around the corner and most of the people just making opinions based on what media wants them to believe or what some shrewd politician (ruling or opposition) may say. I think we the well-read folks should look at the resume and not the speeches of the politicians or reports from media which are more media opinions than real reports.... tried to sum up that sentiments in a poem below...hope you like it!!
एक सवाल, साल दर साल, पूछ रही है जनता तो
कौन जवाब दे इस सवाल का? कौन करे इस फैसले को?
देश का नेता कैसा हो, आखिर किस के जैसा हो ?
जनता अब खुद जिम्मेदारी ले
वोट डाल जिताते जिनको, उनको भी तो जा कर पूछो ,
ऐसा कौन सा काम किया जो, फिर से तुम्हे चुन पाए हम?
कब हमारे काम हो आये, के अब तुम्हारे काम आये हम?
रावण के दस सरों का जैसे, दसों दलों से हो आते तुम
भीतर से तो सब रावण ही हो , फिर क्या हमको बहलाते तुम?
खुद तुम सब सत्ता के लोभी, एक दूजे पे लांछन करते
आपस की गन्दी शतरंज में, जनता को मोहरे सा वापरते
हम को तुम बस मुर्ख न समझो, और न हमें बहलाओ तुम
दूजो की कमी के गीत न गाओ, अपना गुण तो समझाओ तुम?
तुम में ऐसा क्या अच्छा है, कि जनता तुम को नेता वर ले?
पिछले वाले के बदले में, क्यों तुम को कुर्सी पे धर दे?
जीत के तुम भी तो रावण से, अपनी असलियत दिखाओगे
भोली सीता (जनता) को बहला कर, जब रेखा पार ले आओगे
तो हर कर उनके विश्वास को , दंभ से भरी अट्टहास भरोगे
लोगों के भरोसे की लाश गिरा कर , उस पर सालों राज करोगे
आज ने बोलो दूजे की कमियां , आज ना झूठ से बहकाओ तुम
क्या करने का है दम तुम में , अपना परिचय तो करवाओ तुम
आज तुम्हे बतलाते है कि देश का नेता कैसा हो
हम में से ही कोई एक; बस हमारे ही जैसा हो
राशन की कतार में घंटो लग कर ही अपना चूल्हा जलाता हो
अपने बच्चो को सरकारी स्कूल में इमान के पैसे से पढ़ाता हो
चोरी और बेईमानी को मन से जो पाप मानता हो
पढ़ा लिखा हो, देश-विदेश की नई पुरानी बहुत सी बातें जानता हो
जब जाये दूजो के देश तो सबका मन गर्व से भर जाये
अपने देश को (सच के भरोसे) फिर सोने की चिढ़िया कर जाये!!
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