Defining Being

As you may know me.... I try to pen my feelings, with more honesty than with language and grammar. While reading the posts below you may experience what compelled me to write these.
While I was thinking of giving a name to my Blog; this came to me; "Nuances of Being"
Being "Me" is the best that I am at and hope that will show in the posts below

And Thanks for reading

~Nikhil




Friday, January 11, 2013

उन्नति की ओर

कहीं कोई जानवर सा 
इंसानों को ही नोच खा रहा है 
कही कोई मासूम बच्चो का खून बहा रहा है 
कोई देश दुसरे पे आग की बारिश है करता 
तो कोई झूठे मान के नाम पे अपना ही वंश जला रहा है 
                 कहाँ जा रहे है हम?
                 है यही उन्नति तो विनाश सी क्यों लग रही?

दिलों में डरघरों में दहशत है 
इंसान मूक ताकता नाच रही वेह्शत है 
अच्छाई हर दिन कमज़ोर होती जा रही 
बलाएँ रक्तबीज सी हर रोज़ बढ़ती जा रही 
संस्कार दकियानूसी और अल्पसंख्यक हो रहे 
मॉडर्निज़्म* के नाम पे बेशर्मी मुस्कुरा रही       (*Modernism)
"सब सरकार की गलती है" कह अपना फ़र्ज़ टालते 
खुद पे जब जाती तो चीखते - पुकारते 
सडको पे निकल, बसें जलाते पत्थर बरसाते और गुस्सा निकालते 

यदि सीखे होते कभी पडोसी को भाई मानना 
तो कहाँ दुसरे देश पे बमों की बारिश करते?
अपनी माँ के आँचल में सोये होते तो 
क्यों किसी की बेटी को बेईज्ज़त करते?
आँखों में पानी होता अगर तो 
क्यों उमर के तुज़ुर्बे की इज्ज़त करते?
फूलों भरा चमन देखा जो होता 
नन्हे बच्चों की मासूमियत की हिफाज़त करते 
पर शायद समय ही नहीं मिला कुछ लोगो को 
ज़िन्दगी की खूबसूरती समझने का 
उन्नत होने की दौड़ में इंसा होना भी भूल गए 
                कहाँ जा रहे है हम?
                है यही उन्नति तो विनाश सी क्यों लग रही?

अब भी कही थोड़ी सी उम्मीद है बाकि 
है दिलो में सो रही इंसानियत, जगा दो उसे 
डरी ही सही, हिम्मत बटोरो और हौसला दो उसे 
छू के पांव किसी बड़े के थोड़ी दुआये लो 
कर के कुछ अच्छा किसी बिखरते को आशाएं दो 
संस्कारो का मूल्य समझ के उन्हें गर्व से अपनाओ 
अपने कर्मो के बल पर ही अपनी पहचान बनाओ 
छोड़ दो उस दौड़ को जो झूठा दम्ब दे रही 
किसी बच्चे को हँसा कर सच्ची ख़ुशी पाओ 

उन्नति वही है जो समृधि दे सके 
खुद को ही नहीं दुसरो को भी रिद्धि दे सके 
इन्सान की औलाद हो इन्सान बन कर जियो 
पीना ही है तो किसी का दुःख पियो 
उन्नति वही है जो सब को उन्नत करे 
ऐसा भी क्या उठना की बाकी सब छोटे लगें?
बढ़े बनोगे तब ही जब सोच को बढ़ा करो 
फेसबुक*  की फ्रेंड लिस्ट#  के मापदंड पे    (*facebook   #Friendlist)
खुद का बड़प्पन नापना छोड़ दो 

है वही उन्नति जो सब को ख़ुशी दे 
है वही उन्नति जो अधरों को हंसी दे 
है वही उन्नति जो डर को समाज से भगा दे 
है वही उन्नति जो स्वाभिमान जगा दे 
है वही उन्नति जो अपने तक ही  सीमित हो 
पारस की तरह हर छूने वाले को स्वर्णिम आभा दे 

             आओ आज नववर्ष पे उस उन्नति का आह्वान करें 
             जो जीवन का उत्सव (उल्हास और मर्यादा सेमनाना सिखा दे।


 ~~ निखिल डोगरा

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