जीवन सरिता
जिन्दगी अथक नदी के जैसे
जिन्दगी अथक नदी के जैसे
जाने कितनी सदियों से
बिना रुके, बिना थके बस
चलती जा रही है!
हिमनद से सागर का रास्ता
तो दिखता छोटा ही है
पर सागर से फिर हिमनद पर,
बदल की झोली में छुप कर
शीत श्वेत कपास की कोंपल
या फिर बर्फीला झंझावत बन
एक कभी न रुकते हुए चक्र में
जिन्दगी अथक नदी के जैसे
जाने कितनी सदियों से
बिना रुके, बिना थके बस
चलती जा रही है.
हम हर मौसम में आते हैं
नया चहरा नया एक नाम लिए
जीवन को 'अपना' कहते हैं ता जो
यह रहे हमारी पहचान लिए
(किसी एक नाम का नहीं है जीवन
हम भूल के सच को जीते हैं कि)
युगों से गतिमय जीवन सरिता
की है बस पहचान गति, और
जिन्दगी अथक नदी के जैसे
जाने कितनी सदियों से
बिना रुके, बिना थके बस
चलती जा रही है!
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