सुबह होती है शाम होती है, उम्र यूं ही तमाम होती है शायद इस से ज्यादा चुभती हुई बात कम ही कही हो किसी ने। यहाँ उसी उम्र को युहीं तमाम न होने देने के लिए कुछ हिदायत लिखने की कोशिश की है, कहियेगा कैसी लगी.
हर रात नींद मांगती है
एक लोरी सुना देते
हर सुबह आँखें बोलती है
थोड़ा और सुला देते
दौड़ते पैर चाहते हैँ
कुछ देर सांस ले लें
मन पुकारता है आओ
थोड़ा हँसे कुछ खेलें
कितने काम के चलते
हर रात करवाटों में
कल के फ़िक्र खलते
खूंटी पे टांग दो फ़िक्र
कमीज के साथ साथ
बेफिक्री को ओढ़ लो
मौज का थाम हाथ
सोने से पहले रोज़
जी भर जी भी तो लो
कुछ हसीं पिरो लो
खुशियाँ सी भी तो लो
और फिर न्योता दो
उन हसीन सपनो को
जो नींद में रंग भर दें
खुली आंख की तैयारी
वो नींद में आ के कर दें
जगते मे ऐसा कर पाएंगे
जिसका कहीं ज़िक्र होगा
जिसपे खुद को ही फ़ख्र होगा
वो ही लोरी बना सुनाएंगे
आराम नींद सुलाएंगे
क्यों की
हर रात नींद मांगती है
एक लोरी सुना देते
हर सुबह आँखें बोलती है
थोड़ा और सुला देते