Have you ever noticed that when your mind is troubled with a thought, no matter how small, everything starts looking different? The clarity of thoughts is lost and most you observe is tainted in that troubled light. The poem below is a humble attempt to pen that feeling down.
हलचल थोड़ी सी भी हो
तो सब धुंधला कर देती है
पानी ठहरा हो तब ही
दर्पण सा साफ दिखाता है
पानी जैसा ही मन है
भर जाये तो बह निकलता है
पानी की ही तरह, जाने
कहाँ कहाँ से गुज़रता है'
थोड़ा सा नम कर देता है
पानी सा मन, फिर पानी
आँखों तक भर देता है
एक छोटी सी बात का कंकर
मन की सतह जब छू ले तो
लाखों तरंगे नयी पुरानी,
भीतर - बाहर लहराती हैं
और इस हलचल के चलते
सब कुछ धुंधला कर जाती हैं
दर्पण सा बिम्ब बनाता है
बस मन की लेहरों को
थोड़ा संयम में रखना सीखें
(क्यों की)
हलचल थोड़ी सी भी हो
तो सब धुंधला कर देती है
पानी ठहरा हो तब ही
दर्पण सा साफ दिखाता है
The pictures you see here are taken by me at
various lakes with that reflection in still water.