और तुम पूछते हो,
"दिल में क्या छुपाये बैठे हैं?"
यह बाँध टूटा तो क्या-क्या बहा ले जायेगा
पलकों के उस ओर,
इक सैलाब दबाये बैठे हैं
ऐसा नहीं कि मन में तरंग नहीं कोई
मगर रोज़मर्रा से ही,
बहुत उकताए बैठे हैं
फिर भी तुम पूछते हो
"दिल में क्या छुपाये बैठे हैं?"