An ode to some memories. May bring some memories alive for the friends, especially from college and school days
साल दर साल, शहर दर शहर पिछले किनते युगो जैसे लम्बे सालो में हर दिन, कितने लम्हे? हर लम्हा कुछ नया सिखाता और कुछ पुराना भुलाता।
साल दर साल, शहर दर शहर पिछले किनते युगो जैसे लम्बे सालो में हर दिन, कितने लम्हे? हर लम्हा कुछ नया सिखाता और कुछ पुराना भुलाता।
हम चल रहे हैं, रोज़ कुछ सीखते और कुछ भूलते; कुछ साथ ले लेते और कुछ पीछे छोड़ देते और चलते रहते ।
हर नयी बात, हर नया लम्हा किसी पुरानी बात, पुराने लम्हे के एवज में ले कर, रोज़ की खरीद फरोख्त के बाद हर शाम का नफा नुक्सान नापते हुए रात बिताते और अगले दिन चलने के लिए तैयार होते ।
पर फिर भी, इस सीखने-भूलने, थामने -छोड़ने के बीच में कहीँ, कुछ पल, कुछ लम्हे हैं जो हिले नहीं ।बस जहां थे वही थम गए, बस उसी तरह जिस तरह थे, न चले, न बदले, न ही अपने एवज में किसी और को आने दिया ।
ऐसा ही एक लम्हा कही जम्मू में अकाफ-मार्किट की burger वाली दुकान में बैठा है तो दूसरा उधमपुर के पास चोपड़ा-शॉप की किताबों की दूकान के पास वाले शहतूत के पेड़ से खट्टे-मीठे शहतूत तोड़ रहा है
और वहां Engineering College , New Boys Hostel से College जाने वाले रास्ते पे कोई लम्हा घाटी में उतरती पगडण्डी तो नाप रहा है, ताकि भाग के उतारते हुए गिर कर घुटने ना फुड़वा ले । वही दो चार अलग अलग लम्हे, Hostel के दीवार से लगी बड़ी Light के बिना कारण जलने भुझने पर बिना कारण ही हस रहे हैं, उनके बीच वह एक लम्हा उसी Light को देख कर उदास खड़ा है क्यों की आज College का आखिरी दिन है, अब शायद यह बे-बात की Light और बे-बात की हंसी कभी नहीं दिखेगी । सिद्धार्थ के ब्रेड पकोड़े और बिरयानी चखते हुए उस वेटर को देख कर अब भी हंस रहे हैं
कुछ लम्हे तो सफर में है, फिर भी वही के वही; ST की बस में Hostel से City जाते हुए हिचखोले खा रहे लम्हे, और झेलम एक्सप्रेस के Sleeper Class की सीटों पे बेवजह हक़ जताते हुए कुछ ढीठ लम्हे ।वहि दूसरी ओर कर्नाटका एक्सप्रेस के डब्बो के बीच की पुलिया से गुज़रते हुए, सफर में फिर भी सालो से वहीँ के वहीँ । और एक-आध तो अभी भी दौण्ड जंक्शन के खानावल में थाली से आचार का स्वाद चख रहा है । और वह एक कुर्डुवादी की गरमा-गरम इडली चटनी को केले के पत्ते पर ले कर भागते हुए Train पकड़ता हुआ लम्हा ।
वही CEDT की कैंटीन के पीछे Table Tennis के match के बाद बिना बात ठहाके लगाता हुआ लम्हा अब भी उतना ही बेपरवाह, बेखबर और बेबाक।
यह फहरिस्त उस रुके हुए लम्हों की, काफी लम्बी है ।ऐसे ही पहाड़ो, घाटियों, बसों,-ट्रेनों, समुद्र किनारे, पार्क के बेंचो पर, चाय के ठेलो पर,Airport की Waiting Lounge में, सुस्ताते, खेलते, चहकते, डरते, रोते, कितने ही ऐसे लम्हे जो हमेशा से वही अपना हक़ जताए खड़े हैं ।
जब मैं रोज़ के नफा नुक्सान से थक जाता हूँ, तो इन में से किसी एक जिद्दी लम्हे में जा कर उसे फिर से जी लेता हूँ ।
यह बेपरवाह, रुके हुए, ज़िद्दी लम्हे सालों के बाद भी जहाँ थे, वही खड़े हैं फिर भी हमेशा इतने करीब की जब चाहे इन्हे छु लूँ ।
मेरे इन लम्हों के बहुत सारे साथी कही आगे निकल गए है, बड़े हो गए है व्यस्त हो गए हैं; कुछ मेरी ही तरह । रोज़ का नफा -नुक्सान हम सब जो अलग अलग दिशा में ले जाते हुए अलग अलग दुनिया में ले आया है । अब भी जब मैं इन लम्हों को छूता हूँ तो सोचता हूँ की क्या उन साथियों को वह छुवन महसूस होती होगी?
डरता हूँ की कही किसी दिन अगर यह लम्हे, चल निकले या नफा -नुक्सान के बोझ में दब कर ग़ुम गए तो मैं अपने थकन के पलों में कहाँ छुपूंगा?
यह लम्हे मेरे medals , मेरी ही तरह जिद्दी, मेरी ही तरह ठहाके लगाने को आतुर और मेरी ही तरह कही बहुत पहले रुके हुए। .......... मेरे ज़िद्दी लम्हे ।
जानता हूँ हर कोई अपने दिल में ऐसे ही लम्हों का खजाना छुपाये बैठा है । मेरे लम्हे बाँट रहा हु, ताकि आप अगर अपने उस खजाने को बहुत देर से नहीं मिले तो रुक कर एक बार उसे मिल लें, कुछ भोले लम्हों को छू कर उनकी ओस सी ठंडक ले कर आज की नफा-नुक्सान बही बंद करें, इस से शायद कल और भी सुहाना हो ।
मेरा यह सन्देश उन दोस्तों के नाम जिन्होंने इन लम्हों में रंग भरा।