I must
be a traveler at heart; a wanderer who always is fascinated by the adventure
and the pain that a traveler experiences. I have written some poems and a few
articles on this subject but still I feel something more is to be written and I
start writing...The poem below is a similar attempt. Looking forward to your
thoughts and comments.....
एक रास्ता कुछ कच्चा कुछ पक्का
कुछ रेत, गढ्ढे कुछ पानी कीचड़
एक राही कुछ थका हुआ, कुछ उतेजित
थोडा घबराया और कुछ डरा हुआ
अपने थके पैरों से नापता
राह की गर्मी-सर्दी
उम्मीद टूटती तो थके पैरों को रोकता
फिर हौसला बटोरता बस एक और कदम भर का
याद भी नहीं कितने युगों से, बस युहीं चल रहा है
एकसार हो रहा रास्ते के टूटे-फूटे पन से
दूर क्षितिज पर सूरज ढलता, दूजी ओर से चंदा आता
रात कालिमा दिन को निगलती
भोर को सूरज फिर चढ़ आता
रात है सच्ची या दिन सच्चाई, इस सोच को भुला कर
क्यों अकेला जब संग है तन्हाई इस पहेली तो सुलझाता
याद भी नहीं कितने युगों से, बस युहीं चल रहा है
आते- जाते पथिको को, खुद अपना ही वीर-गान सुना कर
हर बूँद आंसू-रक्त की स्याही से एक कहानी नई बना कर
युगों लम्बे सफ़र को बातों ही बातों में नापता
कभी रोने, कभी हिम्मत के किस्से
कभी भली कभी रूठी किस्मत के किस्से
सुनते सुनाते चल रहा शायद किसी लक्ष्य की ओर
उसकी गति उसका जीवन
चलते रहना उसकी पहचान
उसके कदम ही उसके साथी
उम्मीद उस्ताद, उपदेशक भी
जो करती सदा एक एहसान
हर मोड़ पे आ कानो में कहती
अब लक्ष्य और भी पास है !!!!!Also Posted at http://timesofindia.speakingtree.in/public/spiritual-blogs/seekers/philosophy/content-252573?track=cntshem